विश्व का भूगोल ब्रह्माण्ड और सौर्यमण्डल ( Universe And Solar System )

विश्व का भूगोल ब्रह्माण्ड और सौर्यमण्डल ( Universe And Solar System )

People Also Search –

  • ब्रह्मांड कितना बड़ा है जो ग्रहों, सौर मंडल, आकाशगंगा और सुपरक्लस्टर के क्रम से परे है
  • क्या ब्रह्मांड और सौर मंडल को आसानी से समझने के लिए कोई किताब है
  • अगर ब्रह्मांड सिकुड़ता है तो परमाणु और बाध्य प्रणालियाँ जैसे आकाशगंगाएँ सौर मंडल भी सिकुड़ती हैं
  • आकाशगंगा और ब्रह्मांड में हमारे सौर मंडल की दिशा क्या है?
  • आकाशगंगा और ब्रह्मांड में सौर मंडल में दूरियों को कैसे मापा जाता है
  • मुझे बच्चों के लिए एक किताब का सुझाव दें जो प्रभावी रूप से सौर मंडल के ग्रहों और ब्रह्मांड का वर्णन करे
  • क्या एक कृत्रिम ग्रह को तैनात करने से हमें सौर मंडल और ब्रह्मांड के बारे में अधिक विस्तृत डेटा का अध्ययन करने और एकत्र करने में मदद मिलती है


Solar System Scope

ब्रह्माण्ड ( The Universe ) – 

ब्रह्माण्ड आकार में इतना बड़ा है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। ब्रह्माण्ड में सूक्ष्म कणों से लेकर बड़ी से बड़ी मंदाकिनियाँ सम्मिलित हैं। किसी को पता नहीं है कि ब्रह्माण्ड का आकार कितना बड़ा है परन्तु खगोल विद्वानों के अनुसार ब्रह्माण्ड में ।00 अरब ( 100 billion ) मंदाकिनियाँ हैं और प्रत्येक मंदाकिनी में औसतन 00 अरब सितारे ( Stars ) हैं। 


Que – Hottest Planet In Solar System –

Ans – Venus

 

Que – Smallest Planet In Solar System –

Ans – Mercury


ब्रह्माण्ड ( Expanding Universe ) –

विकासवादी सिद्धान्त के अनुसार, ब्रह्माण्ड में मंदाकिनियों का वितरण प्रत्येक दिशा में लगभग समान दूरी पर है।  इसी कारण किसी पर्यवेक्षक ( Observer ) को किसी भी मंदाकिनी से ब्रह्माण्ड की रचना ( Composition ) समरूप दिखाई देती है।

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Picture of Solar System

आकाशगंगाएँ ( Galaxies ) –

 सितारों के एक विशाल समूह को मंदाकिनी कहते हैं। सबसे छोटी मंदाकिनी में भी लगभग एक लाख सितारे होते

हैं, परन्तु सब से बड़ी मंदाकिनी में लगभग 3000 अरब सितारे होते हैं। 


ब्रह्माण्ड की रचना में मंदाकिनियाँ बिल्डिंग-ब्लॉक

(Building – Block ) का स्थान रखती हैं, अर्थात्‌ ब्रह्माण्ड

की रचना मंदाकिनियों से होती है।


ब्रह्माण्ड की मंदाकिनियों को दो वर्गों में विभाजित

किया जा सकता है:

( i )) नियमित आकाशगंगाएँ ( Regular Galaxies ) तथा

(ii) अनियमित आकाशगंगाएँ ( Irregular Galaxies )


( i ) नियमित आकाशगंगाएँ ( Regular Galaxies )

व्यवस्थित आकाशगंगाएँ डिस्क ( Disc ) अथवा दीर्घवृत्तीय ( Elliptical ) होती हैं तथा उनमें नये सितारे पाये जाते हैं ।इसके विपरीत अव्यवस्थित आकाशगंगाएँ में  सितारे बहुत पुराने होते हैं ।

व्यवस्थित आकाशगंगाएँ का आकार पेंचदार/सर्पिल ( Spiral ) अथवा दीर्घवृत्तीय भी हो सकता है।

( a ) सर्पिलाकार आकाशगगाएँ ( Spiral Galaxies )

आकाश गंगा  एवं विशाल ऐशण्ड्रोमिडा ( Andromeda ), सर्पिलाकार आकाशगंगाएँ ( Spiral Galaxies ) के उत्तम उदाहरण  हैं। इनके मध्य भाग में सितारों का जमावड़ा अधिक होता है |  सर्पिलाकार आकाशगंगाएँ में बक्राकार भुजायें होती हैं। लगभग 25 प्रतिशत आकाशगंगाएँ में बक्राकार भुजायें होती हैं। सर्पिलकार आकाशगंगाएँ में अन्तरातारकीय ( Intersteller ) गैस, पर्याप्त मात्रा में होती है, जिससे नये सितारों की उत्पत्ति होती है। सर्पिलाकार आकाशगंगाएँ की परिक्रमा के दौरान उनकी भुजाओं में नये चमकौले सितारों का जन्म होता रहता है।


( b ) दीर्घवृत्तकार आकाशगगगाएँ ( Elliptical Gallaxies )

अधिकतर आकाशगगाएँ दीर्घवृत्ताकार ( Elliptical ) होती हैं। सामान्यतः: इनका आकार सर्पिलाकार आकाशगंगाएँ ( Spiral Galaxies ) की तुलना में छोटा होता है। इनका आकार सममित ( Symmetrical ) अथवा गोलाकार ( Spheroidal ) है। इनमें से कुछ का आकार इतना छोटा होता है कि उनको बोना ( Dwarf ) की संज्ञा दी जाती है। सबसे बड़ी दीर्घवृत्ताकार आकाशगंगाएँ का व्यास लगभग 200 000

बर्ष ( Light years) माना जाता है। ब्रह्माण्ड में बड़ी तथा अधिक चमकने वाली आकाशगंगाएँ दीर्घवृत्ताकार होती

हैं। लगभग दो-तिहाई (66%) आकाशगंगाएँ दीर्घवृत्तीय हैं।


( ii ) अनियमित आकाशगंगाएँ ( Irregular Galaxies )

कुल आकाशगंगाओं का लगभग 10 प्रतिशत अव्यवस्थित आकाशगंगाएँ हैं। इनके सितारे बहुत पुराने हैं तथा कुछ में नये तथा पुराने सितारों का मिश्रण पाया जाता है। हमारी आकाशगंगा तथा अन्य सर्पिलाकार आकाशगंगाओं में पुराने मध्य भाग में तथा नये एवं अधिक चमकने वाले की भुजाओं में पाये जाते हैं ।


हमारी आकाशगंगा ( Our Galaxy – Milky Way )

 हमारी आकाशगंगा की आकृति एक चपटी डिस्क ( Flat Disc ) के समान है। इसका व्यास लगभग एक लाख प्रकाश वर्ष के बराबर है तथा केन्द्र ( Nucleus ) में इसका व्यास दस हजार के बराबर है, जबकि डिस्क के छोरों पर इसकी मोटाई पाँच सौ प्रकाश वर्ष से लेकर दो हजार प्रकाश वर्षों के बराबर है। आकाशगंगा सितारों तथा धूल से भरी हुई हे तथा इसकी भुजाओं में जुड़वां सितारे पाये जाते हैं। अभी तक शुद्ध रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि सूर्य आकाशगंगा के केन्द्र से कितनी दूर है, परन्तु इसको परम्परागत रूप से 33,000 प्रकाश वर्ष के बराबर माना जाता है। आकाशगंगा की तुलना में हमारा सौरमण्डल ( Solar System ) बहुत छोटा है, जो केवल बारह प्रकाश वर्ष अथवा 3 अरब किलोमीटर के बराबर है। पूरी आकाशगंगा अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रही है। इसके केन्द्रीय भाग के सितारे, बाह्य भाग के सितारों की तुलना में तीक्र गति से परिक्रमण करते हैं। हमारा सूर्य ( Sun ) आकाशगंगा का एक चक्कर लगभग 22 करोड़ (220 ॥॥007) वर्ष में लगाता है ।

निहारिका ( Nebula ) –

मंदाकिनी में पाये जाने वाले धूल के बादलों को निहारिका कहते हैं । यदि निहारिका के बादल की गैस उज्ज्वलित हो जाये तो निहारिका चमकने लगती है।


 श्वेत वामन  ( White Dwarf ) –

सफेद रंग के ड्वार्फ सितारों का घनत्व सामान्य पार्थिव ग्रहों की तुलना में अधिक होता है तथा उनका आकार बहुत छोटा होता है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि श्वेत वामन ( White Dwarf ) सितारे किसी समय में सामान्य सितारों की भाँति थे। धीरे-धीरे इनके नाभिक ईंधन ( Nuclear – Fuel ) का हास हुआ और इनका आकार घट कर छोटा हो गया। यद्यपि कुछ श्वेत वामन तारे हमारी पृथ्वी के आकार के हैं, परन्तु उनका घनत्व हमारे सूर्य के समान है। जल की तुलना में इनका घनत्व दस लाख गुना माना जाता हैं| इनके एक चम्मच भर पदार्थ का वजन कई टन के बराबर होता है। पदार्थ का इतना अधिक घनत्व तब ही सम्भव हे, जब इलेक्ट्रॉन ( Electron ) अपना स्थान बदल कर नाभिक ( Nucleus ) के निकट आ जाये। ऐसे पदार्थ को विकृत पदार्थ ( Degenerated Matter ) कहते हैं।

 यदि कोई सितारा श्वेत वामन का रूप धारण कर ले तो इसकी ऊर्जा तथा ऊष्मा समाप्त हो जाती है जिसके कारण यह ठंडा हो जाता है, धुन्धला पड़ जाता है। इसकी अन्तिम अवस्था एक कृष्ण वामन ( Black Dwarf ) की हो जाती है।


कृष्ण छिद्र ( Black Holes) अथवा न्यूट्रॉन सितारे ( Neutron Stars )-

जैसा की ऊपर वर्णन किया जा चुका है छोटे आकार के श्वेत वामन तारे का घनत्व अधिक होता है तथा बड़े आकर के श्वेत वामन का घनत्व कम | यदि हमारी पृथ्वी कृष्ण  छिद्र के रूप में नष्ट ( Collapse ) हो जाये तो इसके व्याय का आकार घट कर एक फुटबॉल मैदान की लम्बाई के समान रह जायेगा।


सौरमण्डल ( The Solar System )

सूर्य के परिवार को सौरमण्डल कहते हैं। सौरमण्डल में आठ ग्रह, एक छोटा ग्रह ( Dwarf Planet ) प्लूटो, बहुत-से चन्द्रमा  ( Satelites ) तथा अनगिनत ग्रहिकाएं ( Asteroids ) उल्काएँ , धूमकेतु आदि सम्मिलित हैं, जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी पर ऊष्मा तथा प्रकाश सूर्य है। 


सौरमण्डल की उत्पत्ति ( Origin of Solar System ) –

कहा जाता है कि, अंतरिक्ष में अवस्थित विशाल बादल में गुरुत्वाकर्षण के नष्ट होने ( Gravitation collapse ) के कारण सौरमण्डल की उत्पत्ति हुई। सूर्य से दूर जाते हुए ग्रहों की सरचना एवं घनत्व में विभिन्‍नता इस तथ्य को सिद्ध करते हैं। उदाहरण के लिये जो ग्रह सूर्य के निकट हैं, वे नों तथा धातुओं के बने हुये हैं जो ऊँचे तापमान पर थे। इसके विपरीत सूर्य से अधिक दूरी पर पाये जाने की उत्पत्ति ऐसी धातुओं से हुई जो कम अथवा पर ठोस ( Solid ) होते हैं।

 अधिकतर वैज्ञानिकों का विश्वास है कि, ब्रह्माण्ड की उत्तपत्ति लगभग 15 अरब वर्ष ( 15 Billion years ) पूर्व हुई थी। इसके सम्बंध में कहा जाता है कि, भारी बिग-बैंग ( Big – Big ) धमाका हुआ था। इस धमाके के फलस्वरूप भौतिक पदार्थों ने बिखर कर मंदाकिनियों ( Galaxies ), सितारों तथा ग्रहों का रूप धारण कर लिया। वैज्ञानिकों का विचार है कि हमारे सौरमण्डल की उत्पत्ति आकाशगंगा ( Milky – Way ) की भुजा में हुई थी। आकाशंगंगा की इस भुजा में एक हल्का ठंडी गैस का बादल था। इस बादल की मुख्य गेसों में हाइड्रोजन ( Hydrogen ), हीलियम, ऑक्सीजन एवं लौह इत्यादि थे। यह बादल धीरे-धीरे चक्कर लगाने लगा। तत्पश्चात्‌ उस बादल में गुरुत्वाकर्षण शक्ति का पतन ( Collapse ) आरम्भ हुआ और उसमें गैस के घूमते हुए चक्र ( Disc ) उत्पन्न हुये, जिनके आऑतरिक भागका तापमान अत्यधिक था। गैस के यह डिस्क ( Disc ) धीरे-धीरे ठंडे होकर सौरमण्डल का रूप धारण कर गये।

सूर्य ( Sun ) –

व्यास: 1,392,000 किलोमीटर (864,948 मील)

मास :  1900 मिलियन, मिलियन, मिलियन, मिलियन टन।

 वैज्ञानिकों के अनुसार, सूर्य को हे आकाशगंगा की भुजा में पाये जाने वाले धूल के बादल में गुरुत्वाकर्षण बल ( Gravitational Force) के पतन के कारण हुई। सूर्य के आंतरिक भाग का तापमान जब लगभग 1,000,000૦ C तक पहुँचा तब नाभिक संलयन ( Nuclear Fusion ) की प्रक्रिया आरम्भ हुई अर्थात्‌ हाइड्रोजन, हीलियम में परिवर्तित हुआ, जिससे सूर्य से निरन्तर ऊष्मा एवं प्रकाश की लपें उत्सर्जित होती रहीं।


प्रकाश-मण्डल ( Photosphere ) – 

सूर्य की अधिक चमकीली बाह्य परत को प्रकाश-मण्डल कहते हैं सूर्य के इस भाग में 300 किलोमीटर की गहराई तक गैस (508०5) जलती रहती हैं। प्रकाश-मण्डल काअप्रमान लगभग 6000० K ( 11,000%9 ) रहता है।


वर्णमण्डल ( Chromosphere )

प्रकाश-मण्डल के बाह्य भाग को वर्णमण्डल ( Chromo-sphere ) कहते हैं। वास्तव में यह जलती गैसों की एक पतली परत होती है।


सूर्य-कलंक ( Sun – spot )

सूर्य की परत पर कुछ धब्बे उत्पन्न होते हैं, जिन्हें सूर्य कलंक कहते हैं। सूर्य के इन कलंकों ( $075705) का तापमान, आस-पास के तापमान से लगभग 500″८ कम होता है। सूर्य कलंक की औसत आयु चंद दिनों से लेकर कुछ महीनों तक होती है। प्रत्येक सूर्य-कलंक के मध्य भाग को प्रच्छाया ( Umbra ) कहते हैं और प्रकाशित भाग को उपछाया ( Penumbra ) कहते हैं। एक सूर्य-कलंकी चक्र ग्यारह-वर्ष का होता है। एक सूर्य-कलंकी चक्र में सूर्य -कलंकों की संख्या घटती बढ़ती रहती है। कहा जाता है कि जब सूर्य-कलंक उत्पन्न नहीं होते तब सूर्य का तापमान नगभग 1० C कम रहता है। सूर्य कलंकों की कम अथवा थध्वी की जलवायु पर प्रभाव पड़ता हे।


ग्रह ( Planet ) –

ग्रह एक ऐसे खगोलीय पिण्ड ( Celestial-Body ) हैं जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। ग्रह के पास अपना प्रकाश एवं ऊष्मा नहीं होती। हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो सूर्य से प्रकाश एवं ऊष्मा लेती है और उसके चारों ओर परिक्रमा करती है। ग्रहों को निम्न दो वर्गों में विभाजित किया जाता है;


( i ) आन्तरिक ग्रहः [(बुध- Mercury ), (शुक्र- Venus ),

(पृथ्वी- Earth ) तथा (मंगल ( Mars ).


( ii ) बाह्वा ग्रह: [(बृहस्पति- Jupiter ) , (शनि- Saturn ) ,

( अरुण- Uranus ) , तंथा (वरुण- Neptune )]


विभिन्‍न ग्रहों के मुख्य तथ्य निम्न प्रकार हैं:


(i) आन्तरिक ग्रह

बुध ( Mercury ) (वाणिज्य एवं निपुणता का ग्रह)

व्यास: 4878 किलोमीटर (303। मील)

राशि ( Mass ): 330 मिलियन मिलियन, मिलियन टन 

तापमान: न्यूंनतम-73″0, अधिकतम 427૦ C सूर्य से दूरी: 58 मिलियन किलोमीटर (36 मिलियन मील)

दिन की अवधि: 58.65 पृथ्वी दिनों के बराबर

वर्ष: पृथ्वी के 87.97 दिनों के बराबर

ऊपरी सतह का घनत्व: 1 किग्रा. – 0.38 किग्रा.

 बुध ग्रह चन्द्रमा के समान है जिस पर बहुत से प्रसुप्त मुखी और उनके क्रेटर ( Creter ) पाये जाते हैं।


 शुक्र ( Venus ) (सुन्दरता की देवी)

व्यास : 12,102  किलोमीटर , ( 7520 )

मास ( Mass ) : 4870 मिलियन , मिलियन , मिलियन टन 

  

 

ग्रहिका ( Asterroid )

सूर्य के चारों ओर करोडों छोटी ग्रहिकाएँ मंगल एंव बृहस्पति ग्रहों के मध्य परिक्रमा करती रहती हैं जिनको एस्टिरॉयड कहते हैं। कभी-कभी यह ग्रहिकाएँ टूट कर पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश कर जाती हैं और पृथ्वी पर आ गिरती हैं।


धूमकेतु / पुच्छल तारा ( Comets ) –

सौरमण्डल में पुच्छल तारे आश्चर्यजनक खगोलीय पिण्ड माने जाते हैं। जमी (Frozen ) हुई गैसों से बने धूमकेतुओं की तुलना बर्फ की गेंद से की जाती है। बहुत-से धूमकेतु दीर्घ-मार्ग ( Elongated Orbit ) में परिक्रमा करते हें। धूमकेतु, जब शनि की कक्षा (070) में प्रवेश करते हैं तब यह नजर आने लगते हैं। हैली धूमकेतु, बड़े धूमकेतुओं में एक है। हर 76 वर्ष के पश्चात्‌ यह पृथ्वी की कक्षा से गुजरता  है ।


 उल्का ( Meteoroids ) –

 उल्का पिंड तीव्र गति से अन्तरिक्ष में घूमते रहते हैं। उल्का पिंड जब पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते हैं तो घर्षण के कारण वह जलकर चमकने लगती है | जलने के पश्चात यह राख में बदल कर धरती पर बिखर जाते हैं। सामान्यतः इनको शूटिंग स्टार ( Shooting Star ) कहते हैं।


उल्का पिण्ड ( Meteorite )

अन्तरिक्ष से कोई भी वस्तु पृथ्वी के धरातल पर गिरती है तो उल्का पिण्ड ( Meteoride ) कहलाती है। ये उल्का पिण्ड चट्टानों के टुकड़े, राख, निकेल-लोहे आदि के बने होते हैं। विश्व में उल्का पिण्ड के गिरने से अरिजोना राज्य में एक बहुत बड़ा क्रेटर बन गया था। कहा जाता है कि, 300 मीटर गहरा यह क्रेटर लगभग दस हजार वर्ष पूर्व बना था।


मौसम ( Seasons ) –

पृथ्वी अपनी धुरी ( Axis) पर 23  1/2० कोण पर झुकी हुई है । जून के महीने में जब उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य के सामने होता है, तो सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत पड़ती हैं। इसलिये उत्तरी गोलार्द्ध में गमीं का मौसम होता है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में सदी का मौसम। छह महीने के चातू दिसम्बर में सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लम्बवत उड़ती हैं। इसलिये दिसम्बर के महीने में दक्षिणी गोलार्द्ध गर्मी का मौसम और उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी का मौसम है | तथा दक्षिणी गोलार्द्ध सर्दी का मौसम 6 महीने के पश्चात दिसंबर में सूर्य की किरने मकर रेखा पर लंबवत पढ़ती हैं इसीलिए दिसंबर के महीने में दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी का मौसम और उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी का मौसम होता है | 

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 चन्द्रमा ( Moon ) –

विभिन्न अंतरिक्ष अभियानों तथा खोज कार्यों के पश्चात्‌ चन्द्रमा के बारे में बहुत-सी जानकारी प्राप्त हुई है। चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है, जिसका व्यास ( Diameter ) 3470 किलोमीटर है। चन्द्रमा पर करोड़ों ज्वालामुखी (( Crater ) हैं, जो आकार में छोटे गड़ढे (4) से लेकर सैकड़ों किलोमीटर व्यास के हैं। चन्द्रमा पृथ्वी की तुलना में मंद गति से अपनी धुरी पर घूमता है। इसको अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में लगभग 27 दिन लगते हैं। चूँकि चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने में भी लगभग इतना समय लगता है, इसलिये चन्द्रमा का एक भाग ( Same Face ) पृथ्वी से नजर आता है। एक पूर्ण चन्द्रमा से दूसरे चन्द्रमा के बीच 29.5 दिन का समय लगता है। महीने के अलग-अलग दिनों में चन्द्रमा की आकृति भी भिन्न – भिन्न दिखाई देती है, जिसका मुख्य कारण चन्द्रमा रस्परिक बदलता स्थान है। चन्द्रमा के को चन्द्रकलाएं कहते हैं ।


द्रव्यमान: 0,073 द्रव्यमान 

व्यास: 3475 किमी,

घनत्व: ३340 किग्रा./मी’

गरुत्व: 1.6 मी/से’

पलायन बेग: 2.4 किमी./से

घूर्णन समय: 655.7 घन्टे

दिन की अवधि: 708.7 घंटे

सूर्य से दूरी: 0.384 ( 0″ किमी)

कक्षीय समय: 27.3 दिन

कक्षीय वेग: 1.0 किमी./से

कक्षीय झुकाव: 5.1

माध्य तापमान: –20 से.

उपग्रहों की संख्या – 

वलय तंत्र : नहीं 

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