1. सार्वजनिक स्वास्थ्य क्या है ?
स्वास्थ्य के बारे में हम अनेक प्रकार से सोच सकते हैं। स्वास्थ्य का अर्थ है, हमारा बीमारियों और चोट आदि से मुक्त रहना। लेकिन स्वास्थ्य केवल बीमारियों से संबंधित नहीं है। आपने उपर्युक्त कोलाज में से केवल कुछ स्थितियों को ही स्वास्थ्य से जोड़कर देखा होगा।
प्राय: हम ध्यान नहीं देते हैं कि उपर्युक्त हर स्थिति का संबंध स्वास्थ्य से है। बीमारी के अलावा हमारे लिए उन कारणों पर भी विचार करना आवश्यक है, जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए-यदि लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी और प्रदूषण-मुक्त वातावरण मिले, तो वे सामान्यतया स्वस्थ रहेंगे। दूसरी ओर, यदि लोगों को भरपेट भोजन न मिले अथवा उन्हें घुटनभरी अवस्था में रहना पड़े, तो उनके बीमार पड़ने की संभावना अधिक हे।
2. स्वास्थ्य का अर्थ क्या है ?
हम सब चाहते हैं कि हम जो भी कार्य करें, चुस्ती से और ऊँचे मनोबल के साथ करें। सुस्त और अकर्मण्य रहना, चिंताग्रस्त होना और लंबे समय तक डरे-सहमे रहना स्वस्थ जीवन के लक्षण नहीं हैं। हम सबको तनावमुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए। हमारे जीवन के ये सभी पहलू स्वास्थ्य के हिस्से हैं।
3. भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ –
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के कुछ पहलुओं का परीक्षण –
- देश भर में भारत में सर्वाधिक चिकित्सा महाविद्यालय हैं और यहाँ सबसे अधिक डॉक्टर तैयार किए जाते हैं। लगभग हर वर्ष 30,000 से अधिक नए डॉक्टर योग्यता प्राप्त करते हैं।
- पिछले वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा में काफ़ी वृद्धि हुई है। सन् 1950 में भारत में केवल 2717 अस्पताल थे। सन् 1991 में ,11,174 अस्पताल थे और सन् 2017 में यह संख्या बढ़कर 23,583 हो गई।
- भारत में विदेशों से बहुत बड़ी संख्या में इलाज कराने हेतु चिकित्सा पर्यटक आते हैं। वे उपचार के लिए भारत के कुछ ऐसे अस्पतालों में आते हैं, जिनकी तुलना संसार के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों से की जा सकती है।
- भारत विश्व का दवाइयाँ निर्मित करने वाला तीसरा बड़ा देश है और यहाँ से भारी मात्रा में दवाइयों का निर्यात होता है।
- भारत के अधिकांश डॉक्टर शहरी क्षेत्रों में बसते हैं। ग्रामवासियों को डॉक्टर तक पहुँचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या के मुकाबले डॉक्टरों की संख्या काफी कम है।
- भारत में करीब पाँच लाख लोग प्रतिवर्ष तपेदिक (टी.बी.) से मर जाते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक इस संख्या में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। हर वर्ष मलेरिया के लगभग बीस लाख मामलों की रिपोर्ट प्राप्त होती है। यह संख्या कम नहीं हो रही है।
- हम सबको पीने का स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। संचारणीय बीमारियाँ पानी के द्वारा एक से दूसरे को लगती हैं। इन बीमारियों में से 2% जलजनित होती हैं। जैसे-हैज़ा, पेट के कीड़े और हैपेटाइटिस
- भारत के समस्त बच्चों में से आधों को खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है और वे अल्प-पोषण के शिकार रहते हैं।
हमारे जीवन में स्वास्थ्य का क्या महत्व है :
बीमारियों से बचाव और उनके उपचार के लिए हमें उचित स्वास्थ्य सेवाएँ चाहिए, जैसे-स्वास्थ्य केंद्र, अस्पताल, परीक्षणों के लिए प्रयोगशालाएँ, एंबुलेंस की सुविधा, ब्लडबैंक आदि, जो मरीज्ञों को आवश्यक सेवा और देखभाल उपलब्ध करा सकें। ऐसी सुविधाओं की व्यवस्था को चलाने के लिए हमें स्वास्थ्य सेवकों , नर्सों, योग्य डॉक्टरों तथा अन्य विशेषज्ञों की ज़रूरत है,
जो परामर्श दे सकें, रोग की पहचान कर सकें और इलाज कर सकें। मरीजों के इलाज के लिए हमें आवश्यक दवाइयाँ व उपकरण भी चाहिए। जब हम बीमार होते हैं, तो अपने इलाज के लिए हमें इन सुविधाओं की ज़रूरत पड़ती है।
भारत में बड़ी संख्या में डॉक्टर, दवाखाने और अस्पताल हैं। देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को चलाने का पर्याप्त अनुभव और ज्ञान भी उपलब्ध है। ये ऐसे चिकित्सालय और स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिन्हें सरकार चलाती है। सरकार अपनी जनसंख्या के एक बड़े भाग की देखभाल करने में समर्थ है, जो सैकड़ों और हज़ारों गाँवों में फैली हुई है। इस विषय पर हम बाद में अधिक विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही चिकित्सा विज्ञान में बहुत असाधारण प्रगति हुई है, जिसके चलते देश में इलाज की नई तकनीकें और विधियाँ उपलब्ध हें।
फिर भी दूसरा स्तंभ दिखाता है कि हमारे देश में स्वास्थ्य की स्थिति कितनी खराब है। उपर्युक्त सकारात्मक विकास के बाद भी हम जनता को उचित स्वास्थ्य सेवाएँ देने में असमर्थ हें। यह विरोधाभासजनक स्थिति है, जो हमारी अपेक्षाओं के विपरीत है। हमारे देश के पास पैसा है, ज्ञान है और अनुभवी व्यक्ति हैं, फिर भी हम सबको आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ देने में असमर्थ हैं।
4. सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवाएँ
हम स्वास्थ्य सेवाओं को दो मोटे वर्गों में बाँठ सकते हैं–
(अ) सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ
(ब) निजी स्वास्थ्य सेवाएँ
1. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा, स्वास्थ्य केद्रों व अस्पतालों की एक श्रृंखला है, जो सरकार द्वारा चलाई जाती है। ये केंद्र व अस्पताल आपस में जुड़े हुए हैं, जिससे ये शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों को सुविधाएँ प्रदान करते हैं और सभी बीमारियों (साधारण से लेकर विशेष देखभाल की ज़रूरत वाली बीमारियाँ) का इलाज प्रदान करते हैं। ग्राम के स्तर पर एक स्वास्थ्य केंद्र होता है, जहाँ प्राय: एक नर्स और एक ग्राम स्वास्थ्य सेवक रहता है। इन्हें सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है और वे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों की देखरेख में कार्य करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में ऐसा केंद्र कई गाँवों की ज़रूरतों को पूरा करता है। जिला स्तर पर जिला अस्पताल होता है, जो इन सभी स्वास्थ्य केंद्रों की देखरेख करता है। बड़े शहरों में कई सरकारी अस्पताल होते हैं; जैसे एक वह था जिसमें अमन को ले जाया गया था और ऐसे भी विशिष्ट सरकारी अस्पताल हैं, जिनका ज़िक्र हाकिम शेख की कहानी में हुआ था।
इस स्वास्थ्य सेवा को कई कारणों से “सार्वजनिक ‘ कहा जाता है। सरकार ने सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने की वचनबद्धता को पूरा करने के लिए ये अस्पताल तथा स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए हैं। इन सेवाओं को चलाने के लिए धन उस पैसे से आता है जो लोग सरकार को टैक्स के रूप में देते हैं। इसलिए ये सुविधाएँ सबके लिए हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि इसका उद्देश्य अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ निःशुल्क या बहुत कम कीमत पर देना है, जिससे गरीब लोग भी इलाज करा सकें। स्वास्थ्य सेवाओं का अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य है बीमारियों जैसे टी.बी., मलेरिया, पीलिया, दस्त लगना, हैज़ा, चिकनगुनिया, आदि को फैलने से रोकना। इसकी व्यवस्था सरकार को लोगों के सहयोग से करनी होती है अन्यथा यह असफल हो जाएगी।
उदाहरण के लिए-मच्छरों को पैदा होने से रोकने के अभियान को सफ़ल बनाने के लिए यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि क्षेत्र के सभी लोग अपने कूलरों व घर की छतों आदि पर पानी एकत्र न होने दें। हमारे संविधान के अनुसार लोगों के हित को सुनिश्चित करना और सबको स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना सरकार का प्राथमिक कर्त्तव्य है। सरकार को हर व्यक्ति के जीवन के अधिकार की रक्षा करनी है।यदि कोई अस्पताल समय पर व्यक्ति को इलाज नहीं प्रदान कर पाता है, तो इसका तात्पर्य है कि उसे जीवन की सुरक्षा नहीं दी जा रही हे।
अदालत ने यह भी कहा कि यह सरकार का कर्त्तव्य है कि वह मरीज़ों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ दे, जिसमें आकस्मिक इलाज की सुविधा भी सम्मिलित हो। अस्पताल और उनके स्वास्थ्य संबंधी कर्मचारियों को आवश्यक इलाज प्रदान करने की ज़िम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। कई सरकारी अस्पतालों ने हाकिम शेख का इलाज करने से मना कर दिया था। इसलिए अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वह हाकिम शेख द्वारा इलाज पर व्यय किए गए पूरे खर्च का भुगतान करे।
2. निजी स्वास्थ्य सेवाएँ
हमारे देश में कई तरह की निजी स्वास्थ्य सेवाएँ पाई जाती हें। बड़ी संख्या में डॉक्टर अपने निजी दवाखाने चलाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी (आर.एम.पी.) मिल जाते हें। शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में डॉक्टर हैं जिनमें से बहुत-से विशेषज्ञ की सेवाएँ प्रदान करते हैं। निजी रूप से चलाए जा रहे अस्पताल व नर्सिंग होम भी हैं। काफ़ी संख्या में प्रयोगशालाएँ हैं, जो परीक्षण करती हैं व विशिष्ट सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं, जैसे-एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, आदि। ऐसी दुकानें भी हैं, जहाँ से हम दवाइयाँ खरीद सकते हैं।
जैसा कि इनके नाम से ज्ञात होता है, निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार का स्वामित्त्व अथवा नियंत्रण नहीं होता। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के विपरीत इन निजी स्वास्थ्य संस्थाओं में मरीजों को हर सेवा के लिए बहुत धन व्यय करना पड़ता है।
आज निजी स्वास्थ्य सेवाएँ चारों ओर दिखाई देती हैं। अब तो बड़ी-बड़ी कंपनियाँ अस्पताल भी चलाती हैं। कुछ कंपनियाँ दवाइयों को बनाने और बेचने में भी लगी हैं। शहरों के कोने-कोने में दवाइयों की दुकानें देखी जा सकती हैं।
5. क्या सभी लोगों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है
हम भारत में ऐसी स्थिति का सामना कर रहे हैं, जहाँ निजी सेवाएँ तो बढ़ रही हैं, परंतु सार्वजनिक नहीं। ऐसी दशा में लोगों को मुख्यतः निजी सेवाएँ ही उपलब्ध हो पाती हैं। ये शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं। इन सेवाओं का मूल्य भी अपेक्षाकृत अधिक रहता है। दवाइयाँ महँगी होती हैं। बहुत-से लोग उन्हें खरीदने में समर्थ नहीं होते और इसीलिए जब परिवार में बीमारी होती है, तो उन्हें ऋण लेना पड़ता है।
कुछ निजी सेवाएँ अधिक कमाने के लिए प्राय: ऐसे कार्यों को प्रोत्साहित करती हैं, जो सही नहीं हैं। कई बार सस्ते तरीके उपलब्ध होने पर भी उनके प्रयोग नहीं किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए प्राय: देखा जाता है कि कुछ चिकित्सक ज़रूरत से ज़्यादा दवाइयाँ, इंजेक्शन या सेलाइन आदि की सलाह देते हैं, जबकि साधारण इलाज भी पर्याप्त हो सकता है।
तथ्य यह है कि जनसंख्या के बीस प्रतिशत लोग ही बीमारी के दौरान आवश्यक दवाइयों को खरीदने में सक्षम होते हैं। वे लोग भी जिन्हें हम गरीब नहीं समझते, दवा संबंधी खर्चों को उठाने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। एक अध्ययन में यह पाया गया कि जो लोग अस्पताल में किसी बीमारी या चोट लगने के कारण भर्ती होते हैं, उनमें से चालीस प्रतिशत लोग खर्चों का भुगतान करने के लिए पैसे उधार लेते हैं या अपनी कुछ संपत्ति बेचते हैं।
गरीब लोगों के लिए परिवार में हर बीमारी चिंता और मुसीबत का कारण बन जाती है। इससे भी बड़ी बात यह है कि ऐसी स्थिति बार-बार आती है। गरीब लोग पहले ही पोषण की कमी का शिकार होते हैं। ये परिवार उतना भोजन नहीं खाते, जितना इन्हें खाना चाहिए। उन्हें जीवन की आधारभूत आवश्यकताएँ जैसे पीने का पानी, घर के लिए पर्याप्त जगह, साफ़ वातावरण तक उपलब्ध नहीं हो पाता हैं और इसलिए उनके बीमार पड़ने की संभावना अधिक रहती है। बीमारी पर होने वाले खर्चे से उनकी हालत और खराब हो जाती है।
कभी-कभी केवल पैसा ही लोगों के बेहतर इलाज में बाधक नहीं होता। उदाहरण के लिए, महिलाओं को तुरंत इलाज के लिए डॉक्टर के पास नहीं ले जाया जाता है। कई आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्र कम हैं और वे भी अच्छी तरह नहीं चलाए जाते हैं। वहाँ निजी स्वास्थ्य सेवाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं।
क्या किया जा सकता है?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश में लोगों के स्वास्थ्य की दशा अच्छी नहीं है। यह सरकार का उत्तरदायित्त्व है कि वह अपने सब नागरिकों को, विशेषकर गरीबों और सुविधाहीनों को, गुणात्मक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करे। फिर भी लोगों का स्वास्थ्य, जितना जीवन की आधारभूत सुविधाओं पर और उनकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर है, उतना ही स्वास्थ्य सेवाओं के ऊपर भी। इसलिए लोगों के स्वास्थ्य की दशा सुधारने के लिए दोनों पक्षों पर कार्य करना आवश्यक है।